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पहले बेटियों को काटा अब मुझे, ये जान के दुश्मन’:नोएडा में हर दिन डॉग-बाइट के 500 केस, सुप्रीम कोर्ट बोला- नसबंदी कराओ

भूरा सिंह नोएडा के सेक्टर-63 में रहते हैं। 17 अगस्त को जब वो घर लौट रहे थे, तभी उन्हें 4-5 आवारा कुत्तों ने घेर लिया। एक कुत्ते ने उनका बायां पैर बुरी तरह जख्मी कर दिया। उनके पैर में गहरे जख्म के दो निशान हैं।

नोएडा में सेक्टर-39 के जिला अस्पताल में खड़े भूरा सिंह जख्म दिखाते हुए कहते हैं, ‘अचानक कुत्तों ने मुझ पर हमला कर दिया। मुझे आसपास के लोगों ने किसी तरह बचाया। इलाके में आवारा कुत्ते बहुत हो गए हैं, किसी को नहीं छोड़ रहे हैं। ये जान के दुश्मन बन गए हैं। यहां ही देख लो आप, कितनी लंबी लाइन लगी है।

अस्पताल पहुंचने वाले भूरा अकेले नहीं हैं। यहां हर महीने औसतन 5 हजार मरीज कुत्ता काटने के बाद इंजेक्शन लगवाने पहुंच रहे हैं। जुलाई में भी 5,857 मरीज आए। अगर पूरे गौतमबुद्ध नगर जिले यानी नोएडा की बात करें तो सिर्फ जुलाई में कुत्ता काटने की शिकायत लेकर कुल 15,961 मरीज आए। यानी रोज औसत 532 लोगों का रहा।

सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले को लेकर सख्त है। कोर्ट ने 11 अगस्त को दिल्ली-NCR के सभी आवारा कुत्तों को सड़कों से पकड़कर डॉग शेल्टर में रखने का आदेश दिया। हालांकि नए आदेश में 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नसबंदी और वैक्सीनेशन के बाद कुत्तों को छोड़ दिया जाए। सिर्फ उन कुत्तों को शेल्टर में रखें जो रेबीज से संक्रमित हैं या जिनका व्यवहार आक्रामक है।

दैनिक भास्कर की टीम दिल्ली-NCR में ग्राउंड पर पहुंची। हमने डॉग बाइट के शिकार लोगों और डॉग लवर्स से मिलकर मामला समझने की कोशिश की। साथ नसबंदी केंद्रों का हाल देखा।

सबसे पहले डॉग बाइट का शिकार हुए लोग… एक महीने पहले बेटियों को काटा अब मुझे, इन्हें कैद करे सरकार सबसे पहले हम नोएडा में सेक्टर-39 के जिला अस्पताल पहुंचे। यहां वार्ड नंबर-17 में हर रोज मरीजों की लंबी लाइन लग रही है। 18 अगस्त को दर्जनों लोग घंटों अपनी बारी का इंतजार करते रहे। सभी हाथ में पर्ची लिए एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने के लिए खड़े थे।

इन्हीं में एक भूरा सिंह हैं। 17 अगस्त को घर लौटते वक्त उन्हें कुत्ते ने काट लिया। वो भी एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने अस्पताल पहुंचे थे। भूरा बताते हैं, 'मैं ही नहीं एक महीने पहले मेरी दोनों बेटियों को भी कुत्तों ने काट लिया। दोनों बेटियां स्कूल से लौट रही थीं, तभी कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया।

फूल का काम करने वाले मनोज कुमार भी आवारा कुत्ते का शिकार हो चुके हैं। मनोज को नोएडा के सेक्टर-71 में सड़क पर ही एक कुत्ते ने काटा था। वो आवारा कुत्तों को कैद करने के सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले से खुश थे। हालांकि नसबंदी और वैक्सीनेशन के बाद कुत्तों को छोड़ना का नया आदेश उन्हें पसंद नहीं आ रहा है।

मनोज कहते हैं, ‘इनकी वजह से बहुत दिक्कतें हैं। इन्हें बिल्कुल कहीं बंद कर देना चाहिए। कुत्ते ने सिर्फ मुझे नहीं मेरे रिश्तेदार को भी काटा है। आजकल ऐसी घटनाएं बढ़ गई हैं। यहीं देखिए न सबसे लंबी लाइन ऐसे ही लोगों की लगी है। लोगों की मौत तक हो जा रही है। कुत्तों को बैन करना चाहिए।

शेल्टर में डालना उपाय नहीं, सही तरीके से नसबंदी हो यहीं मिले आरिफ भी डॉग बाइट के शिकार लोगों में से हैं। हालांकि वो कुत्तों को शेल्टर में डाले जाने के खिलाफ हैं। आरिफ नोएडा के सेक्टर-18 में एक होटल पर काम करते हैं। 10 अगस्त को वो बाहर कहीं बैठकर खाना खा रहे थे, तभी उन्हें कुत्ते ने काट लिया। आरिफ कहते हैं,ये निश्चित तौर पर एक समस्या है, लेकिन इतनी बड़ी भी नहीं कि उन्हें बंद कर दिया जाए। कुत्तों को भी जिंदगी जीने का हक है, जैसे हमलोग जीना चाहते हैं। अगर व्यवस्थाएं सही हो जाएं तो ऐसा नहीं होगा।

इसके बाद हम राजन कुमार से मिले। वो अपनी मां मीना देवी को रेबीज का इंजेक्शन लगवाने आए हैं। नोएडा के सेक्टर-63 में रहने वाले राजन कहते हैं, ‘हमारे इलाके में आवारा कुत्ते एक बड़ी समस्या है। हमारी ही गली में एक कुत्ता लोगों को लगातार काट रहा है, लेकिन इसके लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राजन कहते हैं, ‘आदेश सही है, लेकिन सेंटर में रखना कोई उपाय नहीं है। इन्हें कंट्रोल करना होगा। इंजेक्शन लगवाकर और नसबंदी करके ही इसे कंट्रोल किया जा सकता है। स्ट्रीट डॉग्स की संख्या बढ़ गई है। अगर सही तरीके से नसबंदी हो तो इस पर लगाम लग सकती है। इन्हें कंट्रोल करना ही जरूरी है, शेल्टर में डालना कोई उपाय नहीं है।‘

नसबंदी या वैक्सीनेशन से कुत्ते काटना नहीं बंद कर देंगे पूर्व केंद्रीय मंत्री और BJP लीडर विजय गोयल कुत्तों को सड़कों से हटाने के जोरदार समर्थक हैं। वे पिछले तीन साल से ‘नो डॉग्स ऑन स्ट्रीट’ अभियान के तहत कुत्तों को सड़कों से हटाने की कोशिश कर रहे हैं।

वे कहते हैं, ‘हमारा सिर्फ एक ही मकसद है कि मानव जीवन बहुत अहम है। इसे कुत्ते के काटने से गंवाया नहीं जा सकता है। इसलिए इन आवारा कुत्तों का इलाज होना चाहिए, जैसे सभी देशों में होता है। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनसे पूछिए कि क्या नसबंदी या वैक्सीनेशन होने से कुत्ते काटना बंद कर देंगे?

विजय गोयल कहते हैं कि पिछले कई सालों से वे दिल्ली नगर निगम और पशु कल्याण बोर्ड में शिकायतें दर्ज करवा रहे हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को समाधान मानते हैं। गोयल ने MCD के कुत्तों को पकड़ने का विरोध कर रहे लोगों के खिलाफ 19 अगस्त को शिकायत भी दर्ज करवाई है। उनका कहना है कि ये लोग कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं।

MCD के पास दिल्ली में एक भी डॉग शेल्टर नहीं सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त के आदेश में दिल्ली नगर निगम समेत NCR के सभी निगमों को 8 हफ्ते में शेल्टर बनाकर कुत्तों को शिफ्ट करने का आदेश दिया था। कोर्ट के मुताबिक, हर शेल्टर में कम से कम 5 हजार कुत्तों को रखने का इंतजाम होना चाहिए। वहां नसबंदी और वैक्सीनेशन के लिए पर्याप्त स्टाफ हो। हालांकि, कोर्ट ने अब अपने ही इस आदेश पर रोक लगा दी है।

हमने कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली में सरकारी डॉग शेल्टर्स तलाशने शुरू किए। तब हमें पता चला कि यहां ऐसा एक भी सरकारी शेल्टर नहीं है। दिल्ली सरकार के मुताबिक, दिल्ली में कुत्तों के लिए 20 नसबंदी केंद्र हैं, जहां अस्थायी रूप से कुत्तों को रखा जाता है। ये सभी केंद्र NGO ही चला रहे हैं। मौजूदा नियम के मुताबिक, वैक्सीनेशन या नसबंदी के बाद कुत्तों को दोबारा उसी जगह पर छोड़ दिया जाता है, जहां से उन्हें पकड़ा गया हो।

नसबंदी के लिए हर महीने लाए जाते हैं 500 कुत्ते हम सरकार की तरफ से लिस्टेड 20 में से दो नसबंदी केंद्रों पर पहुंचे। सबसे पहले हम दक्षिणी दिल्ली के वेटनरी हॉस्पिटल, मसूदपुर में बने एक केंद्र पहुंचे। इसे 'कम्पेनियन एनिमल वेलफेयर सोसायटी' (CAWS) नाम का एक NGO चला रहा है। यहां एक डॉक्टर समेत कुल 7 स्टाफ हैं। डॉक्टर की मानें तो हर महीने यहां औसतन 500 कुत्ते नसबंदी के लिए लाए जाते हैं।

इस सेंटर पर डॉक्टर डॉ रत्नेश यादव पिछले एक साल से तैनात हैं। वे कहते हैं, ‘कुत्तों को पकड़ने के बाद सर्जरी करते हैं। फिर दो से तीन दिनों तक उसे रखा जाता है। फिर उसी इलाके में छोड़ दिया जाता है, जहां से उन्हें लाया गया था। इसके लिए हमें MCD की तरफ से 1000 रुपए दिए जाते हैं। इस सेंटर पर ज्यादा से ज्यादा 100 कुत्ते रखे जा सकते हैं। अभी यहां करीब 50 कुत्ते हैं।‘

सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले को डॉ रत्नेश भी सही नहीं मानते हैं। वे कहते हैं कि इतने सारे कुत्तों को एक जगह पर रखना मुमकिन नहीं है। न ही इतने बड़े-बड़े शेल्टर्स बनाना संभव है। एक साथ ज्यादा कुत्तों को रखने से उनकी जान को खतरा हो सकता है। अपने सेंटर को लेकर वे कहते हैं कि अगर इसे बढ़ाकर मॉडिफाई भी किया जाए, तो भी यहां बहुत ज्यादा कुत्ते नहीं रखे जा सकते।

100 कुत्तों में अगर दो काट रहे, फिर 98 को कैद करना कैसे सही इसके बाद हम वसंतकुंज इलाके में बने नसबंदी केंद्र पहुंचे। इसे 'पेट एनिमल वेलफेयर सोसाइटी' (PAWS) नाम की एक प्राइवेट संस्था चला रही है। यहां कुल 11 कर्मचारी काम करते हैं। सेंटर में अधिकतम 40 कुत्तों को रखने की क्षमता है।

संस्था के अध्यक्ष डॉ आरटी शर्मा कहते हैं कि पिछले 25 सालों से एमसीडी के साथ मिलकर वे कुत्तों की नसबंदी कर रहे हैं। हर महीने 200 से 250 कुत्तों की नसबंदी की जाती है। संस्था को MCD की तरफ से एक एंबुलेंस भी दी गई है। डॉ. शर्मा इस बात से हैरान हैं कि MCD के पास एक भी शेल्टर नहीं है।

वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहते हैं, ‘100 कुत्तों में अगर दो काट रहा है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि 98 को भी अंदर कर देंगे। अभी हम जो कर रहे हैं, अगर उसे ही लगातार करते रहे तो कुछ सालों में इनकी आबादी कंट्रोल कर लेंगे। कुत्ते हमारे समाज का हिस्सा हैं। वे पर्यावरण के संतुलन को बनाकर रखने के लिए जरूरी हैं।

7 लाख कुत्तों की नसबंदी होती, तो दिल्ली में कुत्ते नहीं होते दिल्ली के त्रिलोकपुरी में आवारा कुत्तों की देखभाल के लिए 'एनिमल रैन बसेरा ट्रस्ट' चलाने वाले आरके टेपर कहते हैं कि सरकार को इस मुद्दे से कोई मतलब नहीं है। उनके पास 60 कुत्तों को रखने की क्षमता है, लेकिन अब भी उन्हें सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है।

टेपर कहते हैं, ‘जो MCD पिछले 49 सालों में कुत्तों का वैक्सीनेशन और नसबंदी नहीं कर पाई, उससे आप उम्मीद करते हैं कि वो 10 लाख कुत्तों को संभाल लेगी। उनके पास कोई ट्रेंड स्टाफ नहीं है। ऐसे में शेल्टर अगर बना भी लिए गए तो कुत्ते आपस में लड़कर मर जाएंगे। अगर आप शेल्टर में क्षमता से ज्यादा कुत्तों को रखेंगे तो वो इंसानों पर हमला करेंगे। ये गंभीर समस्या है। इस पर एक्सपर्ट की राय लेने की जरूरत है।

टेपर कहते हैं, हालांकि अब कोर्ट ने शेल्टर में रखने के अपने फैसले पर रोक लगा दी है। अगर सारे कुत्तों को शेल्टर में रखना पड़ता तो बहुत ज्यादा खर्च आता। वे कहते हैं, ‘हम महीने में 40 हजार रुपए सिर्फ चावल पर खर्च करते हैं। बीमारियों पर खर्च करते हैं।

पीपल फॉर एनिमल्स इंडिया की ट्रस्टी गौरी मौलेखी कहती हैं कि अगर हम लाखों कुत्तों को शेल्टर करने की कोशिश करते तो ये पब्लिक हेल्थ के लिए बड़ी चुनौती बन जाता। गौरी के मुताबिक, ‘बहुत सारे जानवरों को एक जगह इकट्ठा करके रखने से वायरस, बैक्टीरिया और जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियां बढ़ेंगी। ये समाधान बिल्कुल नहीं था। हालांकि अच्छा है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर पहले ही रोक लगा दी।

दिल्ली में नसबंदी केंद्रों की खराब हालत पर गौरी कहती हैं, ‘लखनऊ में सिर्फ एक नसबंदी केंद्र है, लेकिन उसने शहर के 70% कुत्तों की नसबंदी कर दी है। दिल्ली में 20 नसबंदी केंद्र होने के बावजूद स्थिति गंभीर है।‘ वो सरकार के इरादों पर सवाल उठाते हुए कहती हैं, ‘यहां सिर्फ कागजों पर नसबंदी हो रही है। अगर सरकार ने 7 लाख कुत्तों की नसबंदी की होती तो दिल्ली में कुत्ते ही नहीं होते। इसके खिलाफ सख्त एक्शन होना चाहिए।