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अहमदाबाद हादसा- मेटल रॉड- प्लेट्स से बॉडीज की पहचान

अहमदाबाद विमान हादसे को 11 दिन बीत चुके हैं। अब तक 259 शवों की पहचान की जा चुकी है। DNA के अलावा दूसरे तरीकों से भी शवों की पहचान की गई।

मृतकों में शामिल ऐसे लोग जिनका कभी कोई ऑपरेशन-सर्जरी हुई, इस दौरान हाथ-पैर में कोई रॉड डाली गई, किसी और तरह का सर्जिकल इक्विपमेंट लगाया गया। उन सब से भी शवों को पहचाना गया।

अमराईवाड़ी से भाजपा विधायक डॉ. हसमुख पटेल ने PTI को ये जानकारी दी। उन्होंने कहा- 12 जून को जब हादसा हुआ तो अहमदाबाद सिविल अस्पताल पहुंचने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं में मैं भी शामिल था।

जिन 259 शवों की पहचान हुई, इनमें 253 शव DNA सैंपल्स से पहचाने गए और 6 शवों की पहचान उनके चेहरे से हुई। 253 लोगों में फ्लाइट सवार 240 लोग हैं, जबकि 13 वो हैं जो घटना के दौरान बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में मौजूद थे या बिल्डिंग के आसपास थे।

अब तक 256 शव परिजनों को सौंपे जा चुके हैं। एअर इंडिया के CEO कैंप्वेल विल्सन ने सोमवार को कहा कि प्लेन क्रैश में 275 लोगों की मौत हुई है।

डॉ. हसमुख पटेल ने क्या कहा, पूरा पढ़ें...

प्लेन क्रैश के बाद हमें (भाजपा नेता-कार्यकर्ता) पार्टी की ओर से दुर्घटना स्थल पर पहुंचने का संदेश मिला, लेकिन वहां अव्यवस्था थी। मैंने सिविल अस्पताल फोन किया, बताया कि शवों को अस्पताल लाया जा रहा है।

इसके बाद हम लोग अस्पताल पहुंचे। यहां पोस्टमॉर्टम सेक्शन गए। तब तक वहां 7-8 शव लाए जा चुके थे। जब हादसा हुआ तब 1000°C तक तापमान था। इसके कारण शव पूरी तरह से काले पड़ गए थे, पहचान करना मुश्किल था।

कुछ शव इस हद तक जल चुके थे कि उनके कुछ हिस्से बाहर निकल आए थे। हमने शवों को उनके आने के क्रम के मुताबिक टेप से टैग करना शुरू किया। जितना संभव हो सका सिर, छाती, हाथ पर कॉटन टेप से टैग लगाए।

आमतौर पर पीड़ितों की पहचान उनकी शारीरिक विशेषता जैसे बाल, किसी तरह की ज्वेलरी या दूसरी चीजों से की जाती है, लेकिन यहां ऐसा मुमकिन नहीं था। ऐसे में हमने टैगिंग में इस बात का ध्यान रखा कि किसी मृतक शरीर में कोई रॉड या दूसरे सर्जिकल इक्विपमेंट तो नहीं है।

मृतकों में शामिल कुछ लोग ऐसे थे जिनके घुटने की रिप्लेसमेंट सर्जरी हुई थी। कुछ के शरीर में सर्जिकल प्लेट, रॉड डाली गई थी। टैगिंग के दौरान ये बातें भी टैग की गईं। ऐसे शवों को अन्य शवों से अलग रखा गया।

जब DNA सैंपल के लिए मृतकों के रिश्तेदारों का आना शुरू हुआ तो उनसे इस तरह की जानकारी भी मांग गई। इसका बहुत फायदा हुआ, शवों की पहचान करने में आसानी रही।