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पाकिस्तान ने अमेरिका को ऑफर किया 'पासनी बंदरगाह'; भारत को काउंटर करने की चाल या पैसे कमाने का रास्ता?

अनुमान है कि इस पोर्ट की लागत 1.2 बिलियन डॉलर (लगभग 10 हजार करोड़ रुपये) होगी. इसे पाकिस्तानी सरकार बनाएगी, लेकिन फंडिंग और सपोर्ट अमेरिका देगा. पासनी में इस प्रस्तावित पोर्ट पर "डायरेक्ट बेसिंग" की अनुमति नहीं होगी. यानी ये ऐसा पोर्ट होगा जहां बाहर से आया कोई कार्गो या कंटेनर सीधा अपने डेस्टिनेशन (गंतव्य) तक पहुंचेगा. इसमें कार्गो को किसी बीच की फैसिलिटी से होकर नहीं गुजरना होता. इसका मतलब है कि इसका उपयोग अमेरिकी मिलिट्री बेस के रूप में नहीं किया जा सकेगा. लेकिन फिर भी ये प्रस्तावित पोर्ट सामरिक महत्व का है. यह चीन द्वारा डेवलप किए गए ग्वादर पोर्ट से लगभग 112 किलोमीटर और ईरान-पाकिस्तान सीमा से 160 किलोमीटर दूर है. 

पाकिस्तान ने रिपोर्ट को नकारा

फाइनेंशियल टाइम की रिपोर्ट के छपने के बाद दुनिया भर में सुर्खियां बनने लगीं. इसके बाद पाकिस्तान के एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने पाकिस्तान के सरकारी टीवी को बताया कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया था. उन्होंने आगे कहा कि इस विचार पर कोई भी चर्चा पूरी तरह खोज और शोध तक सीमित थी. सरकारी चैनल ने नाम न छापने की शर्त पर उनके हवाले से कहा

भारत की चिंता

पासनी में प्रस्तावित पोर्ट भारत के हितों के लिए भी चुनौती बन सकता है. वजह है इसकी ईरान के चाबहार पोर्ट से नजदीकी. ये जगह (पासनी) चाबहार से लगभग 160 किलोमीटर दूर है. अमेरिका की इस जगह पर मौजूदगी से पाकिस्तान हमेशा भारत पर निगरानी करने की कोशिश करेगा. साथ ही अरब सागर में भारत के वॉरशिप्स और नेवी पर भी उसे निगाह मिलने की संभावना है. ऐसा भले ही कहा जा रहा हो कि ये पोर्ट सिर्फ व्यापार के लिए है, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि इस पोर्ट का इस्तेमाल पाकिस्तान अपने हिसाब से करने की कोशिश जरूर करेगा. इस पोर्ट को बनाने के पीछे पाकिस्तान अपने दो टारगेट्स को साधने की कोशिश करेगा. एक तो उसे भारत का डर कम होगा. दूसरा ये होगा कि आर्थिक तौर पर लचर हो चुकी उसकी अर्थव्यवस्था को कुछ बल मिलेगा. 

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