कद्दावर मंत्री के रूप में है लेशी की पहचान
राजनीति के आरंभिक दौर में लेशी सिंह की बाहुबली बूटन सिंह की पत्नी के रूप में पहचान थी, जिनकी हत्या साल 2000 में कोर्ट परिसर में कर दी गई थी. पति की हत्या के बाद लेशी विधायक बनी तो उसके बाद पीछे मुड़कर नही देखी और खुद को राजनेता के रूप में स्थापित करने में सफल साबित हुईं. 20 वर्षों से अधिक समय तक धमदाहा विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुकी लेशी सिंह अपनी राजनीतिक कुशलता के लिए भी जानी जाती है. संतोष कुशवाहा के मैदान में आने के बाद यह चुनाव उनके राजनीतिक कौशल की अग्नि-परीक्षा मानी जा रही है.
क्या MKY समीकरण देंगे चौंकाने वाले परिणाम?
संतोष कुशवाहा को भले ही बीते लोकसभा चुनाव में पराजय मिली हो लेकिन एक युवा और सौम्य राजनेता के रूप में उनकी खास पहचान रही है. कुशवाहा समाज की राजनीति में उन्हें उत्तर बिहार के एक चेहरे के तौर पर जाना जाता है. यही वजह रही कि उन्हें तेजस्वी यादव ने धमदाहा के चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया. MY समीकरण के साथ-साथ अगर कुशवाहा अपने स्वजातीय मतों को जोड़ पाने में सफल होते हैं तो MKY समीकरण के बूते चौंकाने वाले परिणाम से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा, कुशवाहा के उम्मीदवार बनने से कुर्मी समेत अन्य पिछड़ी जातियों के वोटबैंक में सेंधमारी की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता है.
दांव पर जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष की प्रतिष्ठा
जनसुराज ने उम्मीदवार के तौर पर पार्टी के जिलाध्यक्ष राकेश कुमार उर्फ बंटी यादव को चुनावी मैदान में उतारा है. यादव बिरादरी से आने वाले यादव आरजेडी प्रत्याशी का कितना नुकसान कर पाते हैं यह कह पाना कठिन है. धमदाहा जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह की जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों रही है. वे दो बार पूर्णिया से सांसद भी रह चुके हैं. ऐसे में उनका राजनीतिक प्रभाव जनसुराज प्रत्याशी को कितना लाभ दिला पाता है, यह भी समय के गर्भ में है. ऐसे में निश्चित रूप से जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. कुल मिलाकर, समय के साथ-साथ धमदाहा की लड़ाई अबूझ पहेली बनती जा रही है जहां आने वाले दिनों में राजनीति के कई रंग देखने को मिलेंगे.
