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Tulsi Vivah 2025 Katha: जब एक पतिव्रता स्त्री के तप से हिल गई थी सृष्टि, भगवान विष्णु को देना पड़ा ये वरदान, पढ़ें तुलसी विवाह की पूरी कथा

Tulsi Vivah Katha (तुलसी माता की कहानी)

तुलसी माता अपने पिछले जन्म में वृंदा थीं। जो अपने पतिव्रता धर्म के लिए जानी जाती थीं। उनका पति दैत्य राजा जालंधर था जिसने सब जगह आतंक मचा रखा था। लेकिन वृंदा के पतिव्रता धर्म की शक्ति के कारण उसे हरा पाना किसी के बस की बात नहीं थी। इसीलिए जालंधर का वध करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना जरूरी था। इसी कारण भगवान विष्णु एक ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा डर गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में ही दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति के बारे में जानकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति के बारे में पूछा।

ऋषि ने तुरंत ही अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए जिसमें से एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तो दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की मृत्यु देखकर वृंदा मूर्छित हो गईं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि से विनती की कि वह कुछ भी करके उसके पति को जीवित करें। भगवान ने अपनी माया से जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया। लेकिन स्वयं भी भगवान उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का पता न चल सका। भगवान विष्णु को जालंधर समझकर वृंदा उनके साथ पतिव्रता का व्यवहार करने लगीं, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया और युद्ध में उनका पति मारा गया।

जब वृंदा को इस छल के बारे में पता चला तो उसने क्रोध में भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया और भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर बन गये। भगवान के पत्थर का बन जाने से ब्रम्हांड में असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई। यह देखकर सभी देवी देवता भयभीत हो गए और वृंदा से प्रार्थना करने लगे कि वह भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दें। वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। कहते हैं जहां वृंदा भस्म हुईं वहीं तुलसी का पौधा निकल आया।

तब भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा: तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। कहते हैं तब से ही हर साल कार्तिक महीने की देव-उठनी एकादशी से पूर्णिमा तक का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। भगवान ने वृंदा से कहा कि जो मनुष्य इस दौरान मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में यश प्राप्त होगा।

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