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अगर कसाब जिंदा ना पकड़ा जाता तो पूरा नैरेटिव बदल जाता! समझें पूरी कहानी

और सबसे दर्दनाक बात, मुंबई पुलिस के ASI तुकाराम ओंबले का वो बलिदान, जिसने मुंबई आतंकी हमले के सच को पकड़कर दिखाया। कसाब जिंदा ना पकड़ा जाता तो उसकी कहानी दुनिया तक वैसे नहीं पहुंचती जैसी आज हम जानते हैं। ऐसा मुमकिन इसलिए हो पाया क्योंकि तुकाराम ओंबले गोलियों के सामने अडिग खड़े रहे और उन्होंने अपने ऊपर कसाब को हावी होने नहीं दिया। उन्होंने कसाब को पकड़ा और गोलियां लगने के बावजूद उसे जाने नहीं दिया। ASI तुकाराम ओंबले ने सिर्फ एक आतंकी नहीं पकड़ा बल्कि भारत का सच बचाया। विस्तार से समझिए अगर कसाब जिंदा पकड़ में नहीं आता तो कैसे पूरा नैरेटिव बदल जाता।

पाकिस्तानी सरकार और आर्मी आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेते

कसाब जिंदा ना पकड़ा जाता तो पाकिस्तान पर उंगली उठाना बहुत मुश्किल हो जाता। भारत कहता भी “पाकिस्तान में हमले की जड़ें हैं,” तो वहां की सरकार और आर्मी तुरंत बयान दे देती, “यह भारत का आंतरिक मामला है, इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है।” जिंदा सबूत के बिना पाकिस्तान पर दुनिया का दबाव नहीं बन पाता और ना ही इसकी जांच में अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां शामिल होतीं। फिर 26/11 अटैक शायद सिर्फ आरोप–प्रत्यारोप का खेल बनकर रह जाता। ऐसा इसलिए क्योंकि वर्ल्ड पॉलिटिक्स “सबूतों” के आधार पर चलती है, भावनाओं से नहीं। कसाब जिंदा पकड़ा गया तो उसकी पहचान पता चली, उसके जन्मस्थान से लेकर ट्रेनिंग कैंप तक सब सबूत मिले, उसके बयान रिकॉर्ड हुए, कॉल रिकॉर्ड्स मिले, हैंडलर्स के निर्देश की जानकारी मिली, पाकिस्तान पर इन्हीं सारी चीजों से दबाव बना।

कसाब के हाथ में बंधे कलावे से ‘हिंदू आतंकवाद’ का नैरेटिव गढ़ दिया जाता

जान लें कि मुंबई हमले का आतंकी कसाब जब पकड़ा गया था तो उसके हाथ में कलावा बंधा मिला था। अगर कसाब जिंदा ना पकड़ में आता तो यही कलावा सबसे बड़ा भ्रम बनाता। कयास लगाने वालों को ये कहने का मौका मिल जाता, “देखिए, हमलावर हिंदू थे।” फिर जिनके लिए ये सियासी फायदे की बात होती, वे इसे मुद्दा बना लेते। ये बात आपको जानकर हैरानी भी कि ऐसी कोशिश तो कसाब के जिंदा पकड़े जाने के बाद भी हुई थी। लेखक अजीज बर्नी ने मुंबई हमले पर एक किताब लिखी थी, जिसका नाम है "आरएसएस की साजिश- 26/11" यह किताब और इसके दावे दोनों काफी विवादित रहे। इस किताब में 2008 के मुंबई आतंकी हमले को लेकर RSS पर आरोप लगाए गए थे, हालांकि इन दावों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया था। इस किताब के प्रकाशन पर काफी विवाद हुआ तो लेखक अजीज बर्नी ने माफी भी मांगी थी। फिर आधिकारिक जांच और अदालती कार्यवाही से साफ हुआ कि मुंबई हमलों के पीछे पाकिस्तान के आतंकवादी थे। इसके पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ होना सामने आया था।

पाकिस्तान में बैठे आतंकियों ने कैसे पूरी साजिश रची, इसका खुलासा भी नहीं होता

26/11 मुंबई हमला कोई आम हमला नहीं था, इसके पीछे एक बड़ी मशीनरी थी। रिसर्च, फंडिंग, ट्रैवल और कम्युनिकेशन सब इसका महत्वपूर्ण हिस्सा थे। अगर कसाब मारा जाता तो ये सब बातें गहरे अंधेरे में दब जातीं। इस हमले की जड़ तक पहुंचना भारत के लिए बहुत मुश्किल हो जाता। कसाब से पूछताछ में ही सामने आया कि वह बाकी आतंकियों के साथ कैसे मुंबई में दाखिल हुआ था। पाकिस्तान में कौन-सा लॉन्चिंग पॉइंट था, पाकिस्तान में उसको कौन ट्रेनिंग देता था, उसको किस आतंकी संगठन ने भर्ती किया था, किसने मुंबई हमले के निर्देश दिए, ये सारी बातें तभी साबित हो पाईं क्योंकि कसाब जिंदा पकड़ा गया था।

आतंकी भारत के थे या विदेशी, यह पता करना मुश्किल हो जाता

कसाब से जब पूछताछ हुई तो उसकी भाषा, उसके बोलने के तरीके, पाकिस्तान में उसके गांव, उसके माता-पिता और पाकिस्तान से जुड़ी उसकी हर चीज के बारे में पता चला। यह ठोस सबूत था कि 26/11 मुंबई हमले में पाकिस्तान की जमीन इस्तेमाल की गई। इसके साथ ही ये भी साबित हुआ कि आतंकी विदेशी थे, भारतीय नहीं। लेकिन अगर कसाब मारा जाता तो जब भारत कहता, “हमलावर विदेशी हैं।” तो दुनिया पूछती, “इसके सबूत कहां हैं।” भारत के भी कई लोग सवाल उठाते कि क्या ये आतंकी भारत के रहने वाले थे या क्या किसी लोकल ग्रुप ने इस हमले को अंजाम दिया है। कई तरह की थ्योरी फैलाई जातीं। कई लोग तो इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश भी करते। लेकिन कसाब के जिंदा पकड़े जाने ने यह संभावना खत्म कर दी। उसकी मौजूदगी ने इस हिस्से को ‘‘अस्पष्ट” से ‘‘स्पष्ट’’ बना दिया।

इससे साफ है कि अगर कसाब जिंदा पकड़ में ना आता तो झूठे नैरेटिव हावी हो सकते थे। हमलावरों की पहचान को लेकर दुनिया अनिश्चित रहती। शायद, साजिश करने वालों का नेटवर्क अंधेरे में रहता। और 26/11 हमले की सच्चाई शायद “आधा सच” बनकर रह जाती। मुंबई हमले के वक्त ASI तुकाराम ओंबले का कसाब को जिंदा पकड़ने का फैसला भारत के लिए बहुत मददगार साबित हुआ। उन्होंने सिर्फ एक आतंकवादी को नहीं पकड़ा बल्कि उन्होंने सच्चाई को जिंदा बचाया।