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पहलगाम में 11 जानें बचाने वाले नजाकत रोजी-रोटी को मोहताज

‘22 अप्रैल की घटना के बाद टूरिज्म बिल्कुल ठप पड़ा है। पहले एक पोनी वाला दिन में 3,000-4,000 रुपए कमा लेता था, लेकिन हमले के बाद सब ठप हो गया। हमारी रोजी-रोटी टूरिज्म से ही चलती है। मेरी दो बेटियों की पढ़ाई भी इसी से चलती है।‘

पहलगाम में पोनी चलाने वाले गाइड नजाकत अहमद शाह आतंकी हमले के वक्त मौके पर ही मौजूद थे। उन्होंने आतंकी हमले में 11 टूरिस्ट्स की जान बचाई थी। अब पहलगाम हमले को ढाई महीने से ज्यादा बीत चुका है, लेकिन टूरिज्म पटरी पर नहीं आ सका है। हालांकि, अमरनाथ यात्रा से थोड़ी-बहुत कमाई जरूर शुरू हुई है, लेकिन टूरिज्म पर निर्भर लोगों के हालात अब भी सुधरे नहीं हैं।

उन परिवारों की तकलीफ और भी ज्यादा है, जिन्होंने इन हमलों में अपनों को खो दिया। आतंकी हमले में जान गंवाने वाले कश्मीर के आदिल हुसैन का परिवार अब तक न उन्हें खोने के गम से उबर पाया है और न हमले के खौफ से। आदिल की मां बेबीजान कहती हैं, ‘जब छोटा बेटा घर से घोड़ा लेकर निकलता है तो बस मन में उसकी सलामती की ही फिक्र रहती है।‘

पहलगाम हमले के बाद टूरिज्म पर निर्भर लोगों का क्या हाल है? हमले के बाद चर्चा में आए जिप लाइन ऑपरेटर मुजम्मिल, टूर गाइड सज्जाद और पोनी चलाने वाले गाइड नजाकत अहमद शाह किस हाल में हैं? आतंकियों की गोली लगने से जिन आदिल हुसैन की मौत हुई थी, उनका परिवार कैसी जिंदगी जी रहा है? ये जानने दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर पहुंची।

सबसे पहले आदिल के परिवार से बात… मां बोलीं- हालात पहले से बेहतर, लेकिन दिल में अब भी डर बायसरन घाटी में जान गंवाने वालों में खच्चर चलाने वाले गाइड आदिल हुसैन अकेले मुस्लिम थे। आतंकियों ने उन्हें 3 गोलियां मारी थीं। आदिल का घर पहलगाम से करीब 20 किमी दूर अनंतनाग के हापतनार में है। हम आदिल के परिवार का हाल जानने के लिए उनके घर पहुंचे। घर नए सिरे से बनाया जा रहा है।

आदिल के पिता सैयद हैदर शाह उसकी याद में स्मारक बनाने की मांग करते हुए कहते हैं, ‘स्मारक आदिल की याद को हमेशा जिंदा रखेगा।‘ परिवार के हाल पर सैयद बताते हैं, ‘आदिल की मां की तबीयत खराब रहती है। वो पहले से थोड़ी कमजोर हैं। आस-पास के लोग दुख बांटने आते-जाते रहते हैं, जिससे थोड़ा सहारा मिलता है।‘

अब आदिल का छोटा भाई नौशाद टूरिस्ट्स के लिए गाड़ी चलाता है। मां बेबीजान उसी सेफ्टी को लेकर परेशान रहती हैं। वे कहती हैं, ‘आदिल के जाने के बाद कुछ ठीक नहीं लगता। मेरी तबीयत भी खराब रहती है। हालांकि, अब सुधर रही है। मेरा छोटा बेटा टूरिस्ट्स के लिए गाड़ी चलाता है और भाई का बेटा घोड़ा लेकर जाता है। डर तो बहुत लगता है, लेकिन मजबूरी है। अगर वो काम पर न जाएं तो घर कैसे चलेगा? कमाएगा कौन?‘

वे कहती हैं कि पिछले दो महीने में जिंदगी थोड़ी बेहतर हुई हैं, लेकिन दिल में डर बना रहता है। सब कुछ वैसा नहीं है, जैसा पहले था।

बहू को सरकारी नौकरी मिलने से पिता नाखुश आदिल के परिवार को सरकार ने 16 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी और आदिल की पत्नी को सरकारी नौकरी मिली है। हालांकि, सैयद, बहू को सरकारी नौकरी मिलने से खुश नहीं हैं। वे कहते हैं, ‘आदिल की शादी को 6 साल हो चुके हैं, लेकिन उसकी पत्नी पिछले 5 साल से मायके में ही रह रही है, क्योंकि उनके रिश्ते अच्छे नहीं थे। इसलिए हम चाहते थे कि नौकरी हमारे छोटे बेटे को मिले। मैंने LG से कहा है कि हमारी रोजी-रोटी का ख्याल रखा जाए।‘

आदिल के घर से 3-4 मकान छोड़कर ही उनकी पत्नी गुलनाज रहती हैं। उन्हें फिशिंग डिपार्टमेंट में सरकारी नौकरी मिली है। गुलनाज बताती हैं, ‘अभी 10 दिन पहले ही 21 जून को नौकरी जॉइन की है। सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक ड्यूटी होती है। अभी सब ठीक चल रहा है, कोई दिक्कत नहीं है। हालांकि, उनका ससुराल वालों से ज्यादा कॉन्टैक्ट नहीं है।‘


अब 11 लोगों की जान बचाने वाले नजाकत-सज्जाद की बात… टूरिज्म ठप होने से मायूस, बोले- सरकार से कोई मदद नहीं, सिर्फ शाबाशी मिली गाइड और पोनी (खच्चर) चलाने वाले नजाकत फिलहाल अमरनाथ यात्रा में खच्चर चला रहे हैं। 22 अप्रैल की घटना के बाद से टूरिज्म काफी कम हुआ है। बाकी लोगों की तरह ही नजाकत की जिंदगी पर भी इसका गहरा असर हुआ है। वे कहते हैं, ‘मेरी दो बेटियों की पढ़ाई और रोजी-रोटी इसी से चलती है। हमले के बाद टूरिज्म थम गया। अब तो हम सब बिल्कुल खाली हो चुके हैं।‘

नजाकत ने आतंकी हमले में जिन 11 लोगों की जान बचाई थी, वे आज भी कॉन्टैक्ट में हैं। वे बताते हैं, उनमें चार परिवार छत्तीसगढ़ के थे। लकी भैया आज भी हर रोज फोन करते हैं। वे कहते हैं कि फिर कश्मीर आएंगे।

नजाकत सरकार की तरफ से कोई मदद न मिलने से नाखुश भी हैं। वे कहते हैं कि सिर्फ हैदराबाद की एक फाउंडेशन ने मदद के नाम पर 50,000 रुपए का चेक दिया। इसके अलावा कोई मदद नहीं मिली। हालांकि, CM उमर अब्दुल्ला ने उन्हें अवॉर्ड देने की बात कही है।

नजाकत की तरह सज्जाद अहमद भट्ट ने भी कई लोगों की जान बचाई थी। सज्जाद ने हमले में घायल टूरिस्ट्स को पीठ पर लादकर सेफ जगह पहुंचाया था। हमने सज्जाद से कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की, लेकिन वे अमरनाथ यात्रा में घोड़ा लेकर गए हैं इसलिए उनसे कॉन्टैक्ट नहीं हो सका।

जिप लाइन ऑपरेटर मुजम्मिल का हाल… ‘अल्ला-हू-अकबर के नारे लगाए तो मीडिया ने परेशान किया‘ हमले के वक्त अल्ला-हू-अकबर के नारे लगाने वाले मुजम्मिल काफी चर्चा में आए थे। उन्हें राष्ट्रीय जांच एजेंसी NIA ने कई बार पूछताछ के लिए बुलाया था। पहलगाम में ही जामिया मस्जिद के पास मुजम्मिल का घर है। हम उनके घर पहुंचे तो वहां कोई नहीं मिला। पास की दुकान में बैठे कुछ लोगों ने बताया कि मुजम्मिल और उनके पिता घोड़ा लेकर अमरनाथ यात्रा में गए हैं।